भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण
संशोधन
21वाँ
संविधान संशोधन, 1967-
-
सिंधी भाषा आठवीं
अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल।
24वाँ
संविधान संशोधन, 1971
1. संसद
को यह अधिकार दिया गया कि वह संविधान के किसी भी हिस्से में चाहे वह मूल अधिकार
हो, संशोधन कर सकती है।
2. राष्ट्रपति
द्वारा संवैधानिक संशोधन विधेयक को मंजूरी दिया जाना जरूरी कर दिया गया।
36वाँ
संविधान संशोधन, 1975-
-
सिक्किम को भारतीय संघ
का पूर्ण राज्य बनाकर दसवीं अनुसूची को समाप्त कर दिया गया।
37वाँ
संविधान संशोधन, 1975-
-
केन्द्रशासित राज्य
अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद् की व्यवस्था।
42वाँ
संविधान संशोधन, 1976-
1.तीन नए
शब्द जोड़े गए- समाजवादी, पंथ निरपेक्ष एवं अखण्डता।
2.
नागरिकों द्वारा मूल कर्त्तव्यों को जोड़ गया(भाग-4क)
3.राष्ट्रपति
को कैबिनेट की सलाह के लिए बाध्यता।
4.प्रशासनिक
अधिकरणों एवं अन्य मामलों पर अधिकरणों की व्यवस्था(भाग-14क)
5.1971 की
जनगणना के आधार पर 2001 तक लोकसभा सीटों एवं राज्य विधानसभा सीटों को निश्चित किया
गया।
6.सांविधानिक
संशोधन को न्यायिक जाँच से बाहर किया गया।
7.न्यायिक
समीक्षा एवं रिट न्यायक्षेत्र में उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों की शक्ति में कटौती।
8.लोकसभा
एवं विधानसभा के कार्यकाल में 5 से 6 वर्ष की बढ़ोतरी।
9.निदेशक
तत्वों के कार्यान्वयन हेतु बनाई गई विधियों को न्यायालय द्वारा इस आधार पर अवैध
घोषित नहीं किया जा सकता कि ये कुछ मूल अधिकारों का उल्लंघन हैं।
10.संसद को
राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के सम्बन्ध में कार्यवाही करने के लिए विधियां बनाने
की शक्ति प्रदान की गयी और ऐसी विधियां मूल अधिकारों पर अभिभावी होंगी।
11.तीन नए
निदेश तत्व जोड़ें गए अर्थात समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, उद्योगों के
प्रबन्ध में कर्मकारों का भाग लेना, पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा
वन्य जीवों की रक्षा।
12.भारत के
किसी एक भाग में राष्ट्रीय आपदा की घोषणा।
13.राज्य
में राष्ट्रपति शासन के कार्यकाल में एक बार में छः माह से एक साल तक की बढ़ोतरी।
14.केन्द्र
को किसी राज्य में कानून एवं व्यवस्ता बनाए रखने के लिए सैन्य बल भेजने की शक्ति।
15.पाँच
विषयों का राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानान्तरण, जैसे- शिक्षा, वन, वन्य
जीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन एवं उच्चतम और उच्च
न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों का गठन और संगठन।
16.संसद और
विधानमण्डल में कोरम की आवश्यकता की समाप्ति।
17.संसद को
यह निर्णय लेने में शक्ति प्रदान की कि
समय-समय पर अपने सदस्यों एवं समितियों के अधिकार एवं विशेषाधिकारों का निर्धारण
करे।
18.अखिल
भारतीय विधिक सेवा के निर्माण की व्यवस्था।
19.सिविल
सेवक को दूसरे चरण पर जाँच के उपरान्त प्रतिवेदन के अधिकार को समाप्त कर
अनुशासनात्मक कार्यवाही को छोटा किया गया(प्रस्तावित दण्ड के मामलें में)
44वाँ
संविधान संशोधन, 1978-
1.लोकसभा
एवं राज्य विधानमण्डल के कार्यकाल को पूर्ववत् रखा गया(5 वर्ष)
2.संसद
एवं राज्य विधानमण्डल में कोरम के उपबन्ध को पूर्ववत रखा गया।
3.संसदीय
विशेषाधिकारों के सम्बन्ध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के सन्दर्भ को हटा दिया।
4.संसद
एवं राज्य विधानमण्डल की कार्यवाही की कार्यवाही की रिपोर्ट के समाचार पत्र में
प्रकाशन के लिए सांविधानिक संरक्षण प्रदान किया गया।
5.कैबिनेट
की सलाह को पुनर्विचार के लिए एक बार भेजने की राष्ट्रपति की शक्ति, परन्तु
पुनर्विचार के पश्चात् पुनः भेजने पर अनुमति देना बाध्यकारी कर दिया गया।
6.अध्यादेश
जारी करने में राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं प्रशासक की संतुष्टि के उपबंध को समाप्त
किया गया।
7.उच्चतम
न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की कुछ शक्तियों को फिर से प्रदान किया गया।
8.राष्ट्रीय
आपात के सन्दर्भ में ‘आन्तरिक अशान्ति’ शब्द के स्थान पर ‘संशस्त्र विद्रोह’ शब्द
रखा गया।
9.राष्ट्रपति
के लिए यह व्यवस्था बनाई गई कि वह केवल कैबिनेट की लिखित सिफारिश पर ही आपातकाल
घोषित कर सकता है।
10.राष्ट्रीय
आपात और राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर सुरक्षा की दृष्टि से कुछ और व्यवस्थाएँ
बनाई गई।
11.मूल
अधिकारों की सूची से सम्पत्ति का अधिकार समाप्त किया गया और इसे केवल विधिक अधिकार
बनाया गया।
12.अनुच्छेद-20
और 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित नहीं किया जा
सकता।
13.उस
उपबन्ध को हटाया गया, जिसने न्यायालय के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री
और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन सम्बन्धी विवाद मामलों पर निर्णय देने की शक्ति छीन
ली थी।
52वाँ
संविधान संशोधन, 1985-
-
इसके तहत संसद एवं राज्य
विधानमण्डल के सदस्यों को दल-बदल के मामलें में निरर्हक ठहराने की व्यवस्था है
इसके विस्तार से दसवां अनुसूची को जोड़ा गया है।
61वाँ
संविधान संशोधन, 1989-
- लोकसभा
एवं विधानसभा चुनाव में मतदान की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
69वाँ
संविधान संशोधन, 1991-
- केन्द्रशासित
राज्य दिल्ली को विशेष दर्जा देते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली बनाया
गया। इस संशोधन में दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा एवं 7 सदस्यीय
मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था भी की गई।
70वाँ
संविधान संशोधन, 1992-
- राष्ट्रपति
के निर्वाचन में निर्वाचन कॉलेज के रूप में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली
विधानसभा के सदस्यों एवं केन्द्रशासित राज्य पुडुचेरी को भी शामिल किया गया।
73वाँ
संविधान संशोधन, 1992-
-
पंचायती राज संस्थाओं को
संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस उद्देश्य के लिए संशोधन में नया
भाग-9 जोड़ा गया। जिसे ‘पंचायत’ नाम दिया गया और नई 11वीं अनुसूची में पंचायत की
29 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई।
74वाँ
संविधान संशोधन, 1992-
-
शहरी स्थानीय निकायों को
संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस उद्देश्य के लिए संशोधन ने नया
भाग-9(क) जोड़ा जिसे ‘नगरपालिकाएँ’ नाम दिया गया और नई 12वीं अनुसूची में
नगरपालिकाओं की 18 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई।
86वाँ
संविधान संशोधन, 2002-
1. प्रारम्भिक
शिक्षा को मूल अधिकार बनाया गया। नए अनुच्चेद-21(क) में घोषणा की गई कि ‘राज्यों
को 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था करनी
चाहिए।‘
2. निदेशक
तत्वों के मामले में अनुच्छेद-45 की विषय-वस्तु बदली गई, राज्य सभी बालकों को चौदह
वर्ष की आयु पूरी होने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबन्ध करने का
प्रयास करेगा।
3. अनुसूची-51(क)
के तहत् एक नया मूल कर्त्तव्य जोड़ा गया जिसे पढ़ा गया, “यह हर भारतीय नागरिक का
कर्त्तव्य होगा कि वह अपने बच्चे को चाहे वह उसके मात-पिता हो या अभिभावक छः और
चौदह वर्ष की उम्र तक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराए।“
97वाँ
संविधान संशोधन, 2011-
-
इस संशोधन के द्वारा
सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान एवं संरक्षण प्रदान किया गया। संशोधन
द्वारा संविधान में निम्नलिखित तीन बदलाव किये गये-
1. सहकारी
समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया। [अनुच्छेद-19]
2. राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक
नया नीति निदेशक सिद्धान्त का समावेश। [अनुच्छेद-43(ख)]
3. “सहकारी समितियां” नाम से एक नया भाग-9(ख) संविधान में
जोड़ा गया। [अनुच्छेद-243यज से
243यन]
99वाँ
संविधान संशोधन, 2014-
-
सर्वोच्च न्यायालय एवं
उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर
एक नये निकाय “राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग” की स्थापना की गई। हालांकि वर्ष
2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस संशोधन को असंवैधानिक एवं रद्द घोषित कर दिया।
परिणामस्वरूप पूर्व में चल रही कॉलेजियम प्रणाली पुनः लागू की गई [संशोधित अनुच्छेद- 124,
127, 128, 217, 222, 224, 224(क), 231 तथा सन्निविष्ट अनुच्छेद- 124(क), 124(ख),
124(ग)]
100वाँ
संविधान सशोधन, 2015-
-
भारत द्वारा कतिपय
भू-भाग का अधिग्रहण एवं कुछ अन्य भू-भाग का बांग्लादेश को हस्तांतरण,
भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता 1974 तथा इसके प्रोटोकॉल 2011 के अनुपालन में।
इस उद्देश्य के लिए इस संशोधित अधिनियम ने चार राज्यों (असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय
एवं त्रिपुरा) के भू-भागों को सम्बन्धित संविधान की पहली अनुसूची के प्रावधानों को
संशोधित किया।
101वाँ
संविधान संशोधन, 2016-
-
इस संशोधन ने देश में
वस्तु और सेवा कर शासन की शुरुआत मार्ग को प्रशस्त किया। जो केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा लगाये
जा रहे अप्रत्यक्ष करों का स्थान लेगा। इस संशोधन में निम्नलिखित प्रावधान किये
गये-
1. वस्तुओं
और सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के प्रत्येक लेनदेन पर वस्तु और सेवा कर लगाने के
लिए कानून बनाने के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं को समवर्ती कर लगाने की शक्तियाँ
प्रदान की गई।
2. इसने
संविधान के तहत ‘विशेष महत्व के घोषित समान’ की अवधारणा को खारिज कर दिया।
3. वस्तुओं
और सेवाओं के अन्तर्राज्यीय लेनदेन पर एकीकृत वस्तु और सेवा कर के लगाने के लिए
प्रदान किया गया।
4. राष्ट्रपति
के आदेश से एक वस्तु और सेवा कर परिषद् की स्थापना।
5. पाँच
साल की अवधि हेतु वस्तु और सेवा कर की शुरुआत के कारण राजस्व के नुकसान के लिए
राज्यों को मुआवजे का प्रावधान किया।
6. सातवीं
अनुसूची की संघ और राज्य सूची में कुछ प्रविष्टियों को प्रतिस्थापित और लोप किया
गया।
102वाँ
संविधान संशोधन, 2018-
1. राष्ट्रीय
पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया जो 1993 में संसद के एक अधिनियम
द्वारा स्थापित किया गया था।
2. पिछड़े
वर्गों के सम्बन्ध में अपने कार्यों से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को राहत दी।
3. राज्य
या संघ राज्यक्षेत्र के सम्बन्ध में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को
निर्दिष्ट करने के लिए राष्ट्रपति को अधिकार दिया।
103वाँ
संविधान संशोधन, 2019-
1. नागरिकों
के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए कोई विशेष प्रावधान करने के
लिए राज्य को सशक्त बनाना।
2. राज्य
को निजी शिक्षण संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए इस तरह के
वर्गों के लिए 10% सीटों तक के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी गई
है, चाहे वह सहायता प्राप्त हो या राज्य द्वारा सहायता प्राप्त न हो, अल्पसंख्यक
शैक्षणिक संस्थानों की अपेक्षा करता है। 10% तक
का यह आरक्षण के अतिरिक्त होगा।
3. राज्य को ऐसे वर्गों के पक्ष में 10% नियुक्तियों
या पदों के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी। 10% तक
का मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा।
104वाँ
संविधान संशोधन, -
-
यह अनुसूचित जातियों और
अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण से सम्बन्धित प्रावधानों में संशोधन करता है। इसके
अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण को
25 जनवरी, 2030 तक 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
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