रविवार, 20 सितंबर 2020

सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगर क्षेत्र

                         हड़प्पा कालीन प्रमुख नगर      

हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता , सिन्धु -सरस्वती सभ्यता , तथा काँस्य युगीन सभ्यता आदि नामों से जाना जाता है। अब तक इस सभ्यता में लगभग 1400 बस्तियों का पता चल चुका है। परन्तु इन सभी में से केवल सात को ही नगर की संज्ञा दी गई है। जो निम्नलिखित है-

1.हड़प्पा- यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के माण्टगोमरी जिले में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित था। इसका सर्वप्रथम उल्लेख चार्ल्स मेसन ने सन् 1826ई. में किया था। 1853ई. में ब्रटिश कालीन रेलवे लाइन की शुरुआत हो चुकी थी। उसी समय सन् 1856ई. में करांची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछाते समय जॉन ब्रंटन और विलियम ब्रंटन ने यहाँ से प्राप्त ईटों का रोड़ों के रुप में प्रयोग किया, तब हड़प्पा सभ्यता का उल्लेख आया।

 सन्1921ई. में भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर पहली बार दयाराम साहनी ने इस स्थल की खोज की। हड़प्पा क्षेत्र लगभग 150 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में बसा हुआ है, जो मोहनजोदड़ो के बाद दूसरा सबसे बड़ा नगर (क्षेत्रफल की दृष्टि से) है। इसके दुर्ग के टीले को AB तथा दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में स्थित लगभग 6मीटर ऊँचे टीले को F नाम दिया गया। इस टीले पर अन्नागार, अनाज कूटने के वृत्ताकार चबूतरे और आवास के साक्ष्य मिले है। ये आवास श्रमिकों के है। अन्नागार रावी नदी तट पर स्थित था। F टीले को पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे प्राप्त हुए है। इसके अलावा 15 आवास, 16 भट्ठियाँ, धातु बनाने की एक मूषा(Crucible) प्राप्त हुए है।

हड़प्पा के दक्षिणी दिशा में कब्रिस्तान मिला है, जिसे R-37 नाम दिया गया है। हड़प्पा में सन् 1934ई. एक अन्य समाधि मिली। जिसे समाधि-H नाम दिया गया है।

2.मोहनजोदड़ो- मोहनजोदड़ो का अर्थ है- प्रेतों या मृतकों का टीला। यह नगर पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दायें तट पर स्थित क्षेत्र की दृष्टि से सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था। जिसका क्षेत्रफल 250 हेक्टेयर था। सिन्धु सभ्यता के सभी नगरों में इसकी जनसंख्या भी अधिक थी। जिसे सिन्धु का बाग तथा इसके दुर्ग टीले को स्तूप टीला भी कहा जाता है। मोहनजोदड़ो की खोज हड़प्पा के एक वर्ष बाद सन् 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने किया था।

इस टीले पर कुषाण काल का स्तूप बना है, इसलिए इसे स्तूप टीला भी कहते है। दुर्ग के टीले में ही यहाँ स्नानागर, अन्नागार, सभा भवन एवं पुरोहित आवास बने हुए होते थे।

स्नानागार- मोहनजोदड़ो का स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा तथा 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। जिसके दोनों सिरों पर सीढ़ियाँ बनी है। स्नानागार का फर्श पकी ईटों का बना है। बगल के कमरे में एक कुआँ बना है, जिससे पानी निकालकर हौज में डाला जाता था। स्नानागार के दक्षिण-पश्चिम में पानी निकालने के लिए नाली बनायी गई थी। स्नानागार का उपयोग धर्मानुष्ठान में स्नान हेतु किया जाता था।

अन्नागार- मोहनजोदड़ो सबसे बड़ी इमारत है, जिसकी लम्बाई 45.71 मीटर और चौड़ाई 15.23 मीटर है।

सभा भवन- दुर्ग के दक्षिण में 27*27 मीटर के आकार का सभा भवन प्राप्त हुआ है।

पुरोहित आवास- स्नानागार के उत्तर-पूर्व में 70.1*23.77 मीटर के आकार का विशाल भवन प्राप्त हुआ है, जिसे पुरोहित आवास कहा गया है।

मोहनजोदड़ो के पूर्वी टीलें को HR,VS तथा DK क्षेत्रों में बाँटा गया था। जिसमें HR क्षेत्र से काँसे की नर्तकी की मूर्ति विशेष रुप से उल्लेखनीय है।

नर्तकी की मूर्ति विशव की सबसे पुरानी कांसे की मूर्ति है। मोहनजोदड़ो से मिली 4इंच की काँसे की यह मूर्ति केवल आभूषण पहने एक नग्न महिला को दर्शाती है। जिसके बाएं हाथ में चूड़ियाँ तथा दाहिने हाथ में कंगन और ताबीज है। यह अपने कूल्हे पर दाहिना हाथ रखे त्रिभंग नृत्य मुद्रा में खड़ी है।

यहाँ मानव के कुल 21 मानव कंकाल प्राप्त हुए है। लेकिन कब्रिस्तान का उल्लेख नही मिलता है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो एक- दूसरे से 482 किमी. दूर सिन्धु नदी से जुड़े है।

3. चन्हूदड़ो- यह सिन्धु नदी के बाएं तट पर स्थित था। इस नगर की खोज 1931 ई. में एन. जी. मजूमदार ने किया। मैके ने यहाँ से मनके बनाने का कारखाना खोज है। यहाँ से प्राप्त हुई मुद्रा में तीन घड़ियाल तथा दो मछलियों का अंकन है। यहाँ बिल्ली का पीछा करते कुत्ते के पंजे के निशान मिले है। एकमात्र यही से वक्राकार ईटें मिली है। इसके अलावा यहाँ से श्रृंगार के सामान लिपस्टिक, काजल, कंघा, उस्तस आदि के प्रमाण मिले है। मात्र चन्हूदड़ों में ही पकी मिट्टी की बनी पाइपनुमा नालियों का प्रयोग किया गया है।

4. लोथल- इसे लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ो कहा जाता है। इसकी खोज 1954 ई. में एस. आर. राव ने की। यह नगर गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के किनारे स्थित है। इसके पूर्वी भाग में एक गोदीवाड़ा का साक्ष्य मिला है। इसकी लम्बाई 223 मी., चौड़ाई 35 मी. तथा गहराई 38 मी. थी। गोदीवाड़ा के उत्तरी दीवार में 12 मीटर चौड़ा प्रवेशद्वार था। जिससे जहाज आते-जाते थे। दक्षिणी दीवार जल निकासद्वार था। इस नगर में जल प्रबन्धन की उत्तम व्यवस्था थी।

5. कालीबंगा- कालीबंगा अर्थात् काले रंग की चूड़ियाँ। यह नगर राजस्थान के गंगानगर जिले में 100 हेक्टेयर में बसा था। इस नगर की खोज 1951 ई. में अमलानन्द घोष ने की थी। यह स्थल प्राचीन सरस्वती ( आधुनिक नाम घग्घर) और दृष्द्वती (आधुनिक नाम चौतंग) नदियों के बीच स्थित था। यहाँ हल से जुते खेत का साक्ष्य मिला है। जुताई आड़ी तिरछी की गई है। अर्थात ऐसा अनुमान है, कि दो फसल एक साथ बोया जाता होगा।

इसके दुर्ग वाले टीले के दक्षिण – पश्चिम में लगभग 300 मी. की दूरी पर कब्रिस्तान स्थित था। जहाँ से 37 शव विसर्जन के उदाहरण मिले है। यहाँ अंत्येष्टि संस्कार के साक्ष्य भी मिले है। यहाँ के नगर टीले में अलंकृत ईटों के प्रयोग के प्रमाण प्राप्त हुए है। यहाँ जल निकासी प्रणाली नही थी। परन्तु भूकम्प के सबसे प्राचीन साक्ष्य मिले है।

6. बनवाली- यह नगर हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था। जिसकी खोज 1974ई. में आर. एस. विष्ट ने की। यहाँ बढिया किस्म के जौ, मकानों के साज सामान, कई अग्निवेदियाँ तथा अर्ध-व़त्ताकार ढ़ाँचे प्राप्त हुए है। यहाँ जल निकासी प्रणाली का अभाव था। यह समृद्ध लोगों का नगर था।

7. धौलावीरा- यह नगर गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में खादिर नाम के एक द्वीप के उत्तरी पश्चिमी कोने पर बसा हुआ एक छोटा सा गाँव है। 100 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बसे इस नगर की खोज सन् 1967-68 ई. में जे. पी. जोशी द्वारा की गई। धौला का अर्थ है- सफेद तथा वीरा का अर्थ है- कुआ। अर्थात यहाँ के टीले पर एक पुराना कुआँ है, जिसके कारण इसका नाम धौलावीरा पड़ा। धौलावीरा आयताकार नगर था। यह सिन्धु सभ्यता का भारत में स्थित दूसरा सबसे बड़ा नगर है। यहाँ कई महत्वपूर्ण साक्ष्य भी प्राप्त हुये है।

अन्य जानकारी-

>वैदिक साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ-

https://civileducation2000.blogspot.com/2020/08/blog-post.html

>महाजनपद

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