चुनाव
प्रणालियाँ (Electoral Systems)
निर्वाचन प्रणाली
निर्वाचन प्रणाली
सामान्यतः दो प्रकार की होती है- प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली और अप्रत्यक्ष
निर्वाचन प्रणाली।
1. प्रत्यक्ष
निर्वाचन (Direct
Election)- यह
मतदान प्रत्यक्ष तरीकें से होते है, इसमें व्यक्ति जो मतदाता होता है निर्वाचन
स्थल पर जिस उम्मीदवार का चुनाव करना चाहे उसे अपना मत देता है। और जिस उम्मीदवार
को अधिक मत प्राप्त होते है, वह विजेता होता है। यह चुनाव की सरल पद्धति है। यह
मुख्यतः भारत, इंग्लैण्ड, अमरीका, कनाडा, स्विट्जरलैण्ड, जैसे देशो में चुनाव के लिए अपनायी जाती है।
2. अप्रत्यक्ष
निर्वाचन (Indirect
Election)- जब मतदाता ऐसे निर्वाचक मण्डल का मतदान करके चुनाव करते
है, जो( निर्वाचक मण्डल) प्रतिनिधियों को चुनते है, तो यह पद्धति अप्रत्यक्ष
निर्वाचन प्रणाली कहलाती है। यह निर्वाचन भारत क राष्ट्रपति के चुनाव तथा संयुक्त
राज्य अमेरिकी के राष्ट्रपति के चुनावों में अपनायी जाती है।
भारत में जनता
निर्वाचक मण्डल को चुनती है, वे निर्वाचक मण्डल राष्ट्रपति को चुनते है। भारत,
सोवियत संघ तथा फ्रांस आदि देशों की राज्यसभा अर्थात द्वितीय सदन के चुनाव हेतु भी
यही प्रणाली अपनायी जाती है।
निर्वाचन
क्षेत्र
ये मुख्यतः दो प्रकार के होते है-
1
एकसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र- जब
राज्य चुने जाने वाली संख्या के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों को अलग-अलग बाँट दिया
जाता है, तब प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से उतना ही प्रतिनिधि चुना जाता है,तो वह
क्षेत्र एकस्दस्यीय निर्वाचन क्षेत्र कहलता है। विश्व के लगभग सभी देशों में यही
निर्वाचन क्षेत्र अपनाया जाता है।
2.
बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र- जब
पूरा राज्य अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है, तो प्रत्येक क्षेत्र
से एक से अधिक प्रतिनिधि चुने जाते है, तो वह क्षेत्र बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र
कहलाता है।
अल्पसंख्यकों
का प्रतिनिधित्व देने की पद्धतियाँ
आनुपातिक
पद्धति- इस पद्धति की
शुरुआत 18वीं सदी में थॉमस हेयर की विचारधारा से हुई। इस पद्धति के लिए बहुसदस्यीय
निर्वाचन क्षेत्र होना चाहिए और निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक मतदाता को उतनी
ही संख्या में मत देने का अधिकार है, जितने उम्मीदवार चुने जाते है। जिन्हें
मतदाता की एक निश्चित संख्या का समर्थन प्राप्त हो जाता है, वे विजयी घोषित कर
दिये जाते है। आनुपातिक पद्धिति दो रुपों में अपनाया जाता है-
1.एकल
संक्रमणीय मत प्रणाली (Single transferable vote system)-
इस
पद्धति में
बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र जरुरी है। तथा एक निर्वाचन क्षेत्र में चाहे जितने भी
सदस्य चुने जाय परन्तु प्रत्येक मतदाता को केवल एक ही मत देने का अधिकार है।
प्रत्येक मतदाता मतपत्र पर दिये गये सब उम्मीदवारों में से जिसे उपर्युक्त
उम्मीदवार समझा जाता है, उसके नाम के आगे पहली पसन्द, अपनी पसन्द के अनुसार उससे
कम उपयुक्त उम्मीदवार के नाम के आगे दूसरी पसन्द ऐसे ही वह क्रमागत उम्मीदवारों की
संख्या के अनुसार अपने पसन्दें देता है। जब कोई उम्मीदवार निश्चित संख्या से अधिक
मत प्राप्त कर लेता है,तो इन अतिरिक्त मतों को मतदाताओं की दूसरी पसन्द के
उम्मीदवार को हस्तान्तरित कर दिया जाता है, इसी प्रकार किसी उम्मीदवार को यदि इतने
कम मत प्राप्त हो की सकी निर्वाचित होने की सम्भावना न रहे, तो मतदातोओं के पसन्द
के अनुसार इन मतों को दूसरे उम्मीदवारों को हस्तान्तरित कर दिया जाता है। मतों की
हस्तान्तरण की व्यवस्था के कारण ही इसे एकल संक्रमणीय मत प्रणाली कहा जाता है।
निश्चित मत संख्या = (मतों
की संख्या/सदस्यों की संख्या+1) + 1
मतगणना- वे
उम्मीदवार जो पहली पसन्द के मतों की गणना में ही वैध मतों से अधिक मत या फिर
निश्चित मत संख्या(Quota) प्राप्त कर लेते है, वह पहले ही दौर में निर्वाचित
घोषित कर दिये जायेंगे। लेकिन जब पहली पसन्द के तहत् उम्मीदवार निश्चित संख्या में
निर्वाचित नही होते, तो मतों का पुनः हस्तान्तरण होता है। निर्वाचित उम्मीदवारों
के निश्चित मत संख्या से अधिक मतों को दूसरी पसन्द के आधार पर अन्य उम्मीदवारों को
हस्तान्तरित कर दिया जाता है। तब जो उम्मीदवार निश्चित मत संख्या प्राप्त कर लेते
है, वे निर्वाचित घोषित कर दिये जाते है। इस तरह मतों का हस्तान्तरण होता रहता है।
जब तक की कोई उम्मीदवार निश्चित मत संख्या न प्राप्त कर ले।
यह
जटिल निर्वाचन प्रणाली केवल कुछ ही देशों में जैसे- नॉर्वे, डेनमार्क, स्वीडन,
फिनलैण्ड आदि देशों में अपनाया जाता है।
भारत देश भी इस जटिल निर्वाचन प्रणाली का प्रयोग राज्य सभा और राज्य के विधान
परिषदों के चुनाव के लिए करता है।
(यह तथ्य ध्यातव्य है, कि भारत में दूसरी मतगणना में
निर्वाचित होने वाले राष्ट्रपति वी.वी.गिरि है। जिन्होंने सन्1969 के चुनाव में
नीलम संजीव रेड्डी को 14617 मतों से हराया था।)
2.
सूची प्रणाली- आनुपातिक
मत पद्धति की यह दूसरी प्रणाली है। इसके अन्तर्गत भी बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र
होते हैऔर एक निर्वाच क्षेत्र से 15-20 तक सदस्य चुने जा सकते है। इस प्रणाली में
चुनाव में लड़ रहे उम्मीदवार की, उनके दलों के अनुसार अलग-अलग सूचियाँ बना ली जाती
है। प्रत्येक मतदाता चुने जाने वाली संख्या के बराबर मत दे सकता है, पर एक
उम्मीदवार को एक मत ही प्राप्त होता है। इस प्रणाली में उम्मीदवारों की अलग-अलग
मतगणना नही की जाती है, बल्कि विभिन्न सूचियों के प्राप्त मतों की गणना की जाती
है। उसके बाद एकल संक्रमणीय प्रणाली के अनुसार निश्चित मत संख्या निकाली जाती है
तथा उस मत संख्या के अनुसार प्राप्त मतों के आधार पर प्रत्येक सूची में कितने
उम्मीदवार निर्वाचित होने चाहिए यह निकाल लिया जाता है। प्रत्येक सूची के
उम्मीदवारों में वही निर्वाचित माना जाता है, जिन्होंने उस सूची में सबसे अधिक मत
प्राप्त किये हो। और सभी दलों को उनकी शक्ति के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त
हो जाता है।