मॉण्टेस्क्यू की जीवनी
v इकाई की रूपरेखा
§ प्रस्तावना
§ जीवन परिचय
§ कार्य
§ अध्ययन पद्धति
§ योगदान
§ आलोचना
§ सारांश
v प्रस्तावना
हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग
की स्थापना का प्रावधान करने वाले 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 को
असंवैधानिक घोषित किया जाना न्यायपालिका द्वारा संसद की कार्यपालिकीय शक्तियों में
हस्तक्षेप करना संविधान के इस प्रावधान पर प्रश्न खड़ा करता है कि ‘कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपने-अपने क्षेत्रों में पृथक रूप से
कार्य करना’ (अनुच्छेद
-50) चाहिए। पृथक्करणीयता का यह सिद्धान्त जो विश्व के विभिन्न देशों के संविधानों में विद्यमान है, यहाँ तक कि भारतीय संविधान का अभिन्न अंग है, समकालीन समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन
करने वाले विचारक मॉण्टेस्क्यू के मस्तिष्क की उपज थी। मॉण्टेस्क्यू फ्रांस के एक
राजनैतिक विचारक, न्यायविद्, दार्शनिक, इतिहासकार तथा साहित्यप्रेमी थे।
v जीवन परिचय
जन्मः 18 जनवरी, 1689, फ्रांस के ला ब्रेदे शहर में
निधनः 10 फरवरी, 1755, (66 वर्ष), फ्रांस के पेरिस में
पिताः जैक्स डी सेकेंडेंट(1654-1713)
माताः मैरी फ्रैंकोइस डी पेस्नेल(1665-1696)
पत्नीः जीन डे लार्टिंग
मॉण्टेस्क्यू का जन्म फ्रांस के बोर्डो शहर से 25 किमी. दूर श्चैतु द
ला ब्रेदे में हुआ था।1 इनके बचपन का नाम चार्ल्स लुईस डी सेकेंडेंट
था। इनके पिता जैक्स डी सेकेंडेंट एक लम्बे कुलीन वंश के सैनिक थे। इनकी माता मैरी
फ्रैंकोइस डी पेस्नेल थी, जिनकी मृत्यु हो गई, जब सेकेंडेंट 7 वर्ष के थे। इन्होने
मृत्यु के पश्चात् अपनी विरासत में बेरोन का टाइटल सेकेंडेंट को दिया।2
इनका मूल परिवार ह्यूगनॉट से था।3 इनकी माँ के मृत्यु के पश्चात् इन्हे
कैथोलिक कॉलेज ऑफ जूली में भेजा गया, जो कि फ्रांसीसी कुलीन वर्ग के बच्चों के लिए
मुख्य स्कूल था, जहाँ वे 1700 से 1711 तक रहे।4 उनके पिता की मृत्यु
1713 में हुई, तब उनका संरक्षण उनके चाचा बारेन डी मॉण्टेस्क्यू ने ले लिया।5
1714 ई. में वे बोर्डो संसद के सलाहकार बने। वे प्रोटेस्टेंट के समर्थक थे6
और उनका विवाह प्रोटेस्टेण्ट जीन डे लार्टिंग से हुआ, जिनसे उनके तीन बच्चे हुए।7
1716 में उनकी चाचा की मृत्यु के बाद उन्हें उनके टाइटल के साथ विशाल सम्पत्ति
विरासत में मिली। तभी से उनका नाम चार्ल्स लुईस डी सेकेंडेंट से बेरोन डी ला
ब्रेडे एट डी मॉण्टेस्क्यू हो गया।8
अप्रैल, 1728 में बार्विक के भतीजे लार्ड वाल्डेग्रेव के साथ
उन्होंने यूरोप की यात्रा प्रारम्भ की, जिसमें उन्होंने ऑस्ट्रिया हंगरी व इटली की
यात्रा की। अक्टूबर के अन्त में 1729 ई. में इन्होंने लॉर्ड चेस्टरफील्ड के साथ
इंग्लैण्ड की यात्रा की, जहाँ वे फ्रीमेसन बन गए और वेस्टमिंस्टर के हॉर्न टावर्न
लॉज में भर्ती हुए।[9]
मॉण्टेस्क्यू उत्तरी अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों में स्वतन्त्रता
के विजेता के रूप में जाने जाते थे। मॉण्टेस्क्यू मोतियाबिन्द से परेशान थे। 1754
के अन्त में उन्होंने अपने घर के पट्टे से छुटकारा पाने के इरादे से पेरिस का दौरा
किया। और ला ब्रेडे से सेवानिवृत्त हो गये। वे जल्दी ही बीमार पड़ गए और तेज बुखार
के कारण 10 फरवरी, 1755 में उनकी मौत हो गई। उन्हें पेरिस के एग्लीस सैंट सल्पीस
में दफनाया गया। किन्तु फ्रांस में हुई क्रान्ति ने उनके अवशेषों के सभी निशान
मिटा दिये।[10]
v प्रमुख कार्य
§
ऐतिहासिक दर्शनः माण्टेस्क्यू की पुस्तक ‘रोमनों की महानता और उनके पतन के कारणों पर विचार’, 1734 ई. में प्रकाशित हुई। इसमें उन्होंने
रोमन साम्राज्य के प्रारम्भ(753ई.पू.) से लेकर कुस्तुनतुनिया के पतन(1453ई.) तक का
विवरण प्रस्तुत किया है।
अध्याय 1 से 10 में मॉण्टेस्क्यू ने कहा कि ‘धन, सैन्य शक्ति और विस्तारवादी नीतियाँ, जो कि अधिकांश
ऐतिहासिक तथ्यों द्वारा रोम के लिए महान शक्ति का स्त्रोत थी, ने वास्तव में रोमन
नागरिकों के नागरिक गुणों की भावना को कमजोर करने में योगदान दिया।‘ रोम के कई युद्धों का विवरण देने के बाद मॉण्टेस्क्यू
ने दावा किया कि “राज्य की महानता से
व्यक्तिगत भाग्य की महानता का कारण बना, चूंकि ऐश्वर्य नैतिकता में निहित है, धन
में नहीं, रोमनों के धन ने जिसकी सीमाएँ बनी रहीं, एक विलासिता का उत्पादन किया
प्रचुरता का नहीं।“[11]
पुस्तक के शेष भाग में उन्होंने महान सम्राटों जैसे- टाइटस,
नर्वट्रोजन, एंटोनिनस पायस, मार्कस ऑरेलियस और जूलिय द अपोस्टेट के नेतृत्व के
कारण और क्रमबद्धता पर विवरण दिया है।[12]
उन्होंने गणतन्त्र से साम्राज्य के परिवर्तन की चर्चा की, जिसमें सुझाव दिया कि यदि सीज़र और पॉम्पे ने गणतन्त्र सरकार को हड़पने का कार्य नहीं
किया होता तो उनकी जगह कोई और करता। यह कारण सीज़र और पॉम्पे का उद्देश्य नहीं
अपितु एक व्यक्ति का उद्देश्य था।
मॉण्टेस्क्यू ने राजनीतिक सिद्धान्तों के
प्रतिपादन हेतु अरस्तू द्वारा अपनायी गई वैज्ञानिक यथार्थवादी, पर्यवेक्षात्मक एवं
ऐतिहासिक पद्धति का प्रयोग कर उसे पुनर्जीवित किया इसलिए उसे ‘आधुनिक ऐतिहासिक शोध का जनक’ और ‘18वीं सदी का अरस्तू’ कहा गया है।
§
राजनीतिक दर्शनः
कानून की परिभाषाः मॉण्टेस्क्यू ने
कानून की परिभाषा पूर्व में दिये गये अरस्तू(कानून, विवेक बुद्धि का आदेश है।), और
बोदां व हॉब्स(कानून, उच्चतर शक्ति का आदेश) से भिन्न थी। मॉण्टेस्क्यू के आशय से “अपने सर्वाधिक सामान्य अर्थ में कानून
वस्तुओं की प्रकृति से उत्पन्न होने वाले आवश्यक सम्बन्ध में हैं। इस अर्थ में सभी
प्राणियों के अपने-अपने कानून होते हैं। ईश्वर का अपना कानून, भौतिक विश्व का अपना
कानून, मानवोत्तर विश्व के अपने कानून, पशुओं के अपने कानून तथा मनुष्य का अपना
कानून।“[13]
इस परिभाषा के अनुसार दो बातें स्पष्ट होती हैं। एक तो
यह कि प्रत्येक वस्तु के अपने अलग-अलग नियम होते हैं और दूसरी यह कि प्रत्येक वस्तु
का दूसरी वस्तु से किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध होता है।
प्राकृतिक नियमः मॉण्टेस्क्यू कहते
हैं कि मनुष्यकृत नियमों के निर्मित होने के पूर्व मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में
प्राकृतिक नियमों से नियन्त्रित था। ये प्राकृतिक नियम थे-
1.
शान्ति और सुरक्षा की इच्छा;
2.
मानव की अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूर्ण
करने की आकांक्षा;
3.
एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहने की
प्रवृत्ति और
4.
एक संगठित समाज बनाकर जीवन व्यतीत करने की
इच्छा, जो मनुष्य में विवेक के कारण उत्पन्न होती है।
भावनात्मक कानूनः प्राकृतिक अवस्था के
अन्त पर निर्मित होने वाले सामाजिक जीवन में मनुष्य के संघर्ष तीन प्रकार के थे,
जिन्हें मिटाने के लिए मनुष्य द्वारा तीन प्रकार के भावनात्मक कानूनों का निर्माण
किया गया-
1.
अन्तर्राष्ट्रीय कानून;
2.
राजनीतिक कानून और
3.
नागरिक कानून।
शासन का स्वरूप और
वर्गीकरणः मॉण्टेस्क्यू ने शासन के विभिन्न स्वरूपों और उसके
आधारभूत सिद्धान्तों का वर्णन करते हुए उनका वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने
शासन के तीन मौलिक रूप माने हैं-
1.
गणतन्त्र(Republic)- गणतन्त्र, वह राज्य होता है जिसमें सर्वोच्च
शक्ति सभी नागरिकों अथवा उसके किसी एक भाग में निहित होती है।
i.
लोकतन्त्र(Democracy)- सभी नागरिकों में सर्वोच्च शक्ति का निहित
होना।
ii.
कुलीनतन्त्र(Aristocracy)- नागरिकों के किसी एक भाग में सर्वोच्च
शक्ति का निहित होना।
2.
राजतन्त्र(Monarchy)- राजतन्त्र वह होता
है, जिसमें एक ही व्यक्ति कुछ निश्चित कानूनों के अनुसार शासन का संचालन करता है।
3.
निरंकुशतन्त्र(Despotic)- निरंकुशतन्त्र वह शासन है, जिसमें एक
व्यक्ति बिना किसी कानून के स्वेच्छाचारी ढंग से शासन का संचालन करता है।[14]
स्वतन्त्रता की धारणा और शक्ति-पृथक्करण का
सिद्धान्त
स्वतन्त्रता की धारणाः मॉण्टेस्क्यू का 21
खण्ड में प्रकाशित प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘कानून की आत्मा’ में जिन विषयों पर विचार व्यक्त किया गया
है, उनमें सबसे महत्वपूर्ण विषय स्वतन्त्रता का है। स्वतन्त्रता की व्याख्या करते
हुए मॉण्टेस्क्यू कहता है कि, “स्वतन्त्रता उन कार्यों को करने का अधिकार है, जिनकी
अनुमति कानून देते हैं और यदि कोई नागरिक ऐसे कार्यों को कर सकता हो जिनकी अनुमति
कानून नहीं देते हैं तो वह व्यक्ति स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं रह जायेगा, क्योंकि
उसके सभी साथियों को भी ऐसी शक्ति प्राप्त रहेगी।“[15]
किन्तु मॉण्टेक्स्यू
के अनुसार, “स्वतन्त्रता का अर्थ
राजनीतिक सत्ता पर ऐसे प्रतिबन्धों से है जिससे किसी भी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने
के लिए कानून बाध्य नहीं करता है और न किसी को ऐसे कार्य को करने से रोका जा सके
जिन्हें करने की कानून आज्ञा देता है।“[16]
शक्ति-पृथक्करण का
सिद्धान्तः इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हुए उन्होंने लिखा है
कि “प्रत्येक सरकार में
तीन प्रकार की शक्तियाँ होती हैं। एसेम्बली, मजिस्ट्रेट और जुडिशियरी।“[17] जिसको आधुनिक स्वरूप में व्यवस्थापिका,
कार्यपालिका और न्यायपालिक माना जा सकता है।
मॉण्टेस्क्यू कहते हैं
कि जब व्यवस्थापन तथा शासन अस्तित्व एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह में निहित
हो जाती हैं तो स्वतन्त्रता का कोई अस्तित्व ही नहीं हो सकता। अर्थात् मॉण्टेस्क्यू
का आशय इस बात से है कि शासन की शक्तियों के एक ही स्थान पर होने से स्वतन्त्रता
खतरे में पड़ जाती है। अतः व्यक्ति की स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए व्यवस्थापन,
शासन तथा न्याय सम्बन्धी सभी शक्तियों का पूर्णतः पृथक्करण होना चाहिए और किसी
विभाग से सम्बन्धित अधिकारियों को यह अधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए कि वे अन्य
विभागों की शक्तियों का अतिक्रमण कर सके या उनमें हस्तक्षेप कर सके।
v
अध्ययन पद्धति
मॉण्टेस्क्यू समाजशास्त्रीय और ऐतिहासिक
पद्धति के समर्थक थे। उन्होंने अपने पूर्व के लेखकों की निगमनात्मक पद्धति(लेखक
द्वारा बुद्धि, तर्क व कल्पना के आधार पर पूर्वाग्रह निर्धारित कर अपने चिन्तन का
लेख प्रस्तुत करना) का उपयोग न करके अनुभूतिमूलक दृष्टिकोण तथा पर्यवेक्षण पर आधारित
वैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक पद्धति को अपनाया। यह आगमनात्मक पद्धति है जिसका प्रयोग
अरस्तू द्वारा किया गया था। मॉण्टेस्क्यू ने इसी पद्धति का प्रयोग करते हुए
प्राचीन एवं समकालीन मानव इतिहास के अध्ययन और अनुभव के आधार पर अपने राजनीतिक
सिद्धान्तों और मान्यताओं को निर्मित किया।[18]
v योगदान
मॉण्टेस्क्यू की पहली देन विषय-वस्तु की
दृष्टि से है। डनिंग उनकी तुलना प्लेटो, अरस्तू, एक्विनास, बोदां, सुअरेज आदि से
करता है। मॉण्टेस्क्यू ने राज्य के मौलिक सिद्धान्तों का निरूपण करने के बजाय उन
सिद्धान्तों का अधिक वर्णन किया जो उसके स्वरूप को निर्धारित करते हैं और उसकी
सम्पूर्ण प्रेरणा के स्त्रोत हैं।
दूसरी देन राजनीतिशास्त्र के अध्ययन के लिए
ऐतिहासिक और पर्यवेक्षणात्मक पद्धति के प्रयोग के रूप में है। यद्यपि मॉण्टेस्क्यू
के पूर्व इस पद्धति का प्रयोग अरस्तू, मैकियावेली, बोदां आदि विद्वानों द्वारा
किया जा चुका था किन्तु उन्हे पूर्णतः विकसित करने तथा व्यापक पैमाने पर उसका
प्रयोग करने का श्रेय उन्हें ही जाता है।
राजनीतिशास्त्र में उनका सबसे बड़ा और
अमूल्य योगदान स्वतन्त्रता और शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त है, जिसका प्रतिपादन
करके उसने नागरिकों की स्वतन्त्रता से सुरक्षा की व्यवस्था की। आज विश्व के कई
संविधानों में यह सिद्धान्त किसी न किसी रूप में विद्यमान है।
v आलोचना
यद्यपि व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा की
दृष्टि से शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त की उपयोगिता सर्वत्र आवश्यक है, किन्तु
इनकी आलोचना भी निम्नलिखित आधार पर की जा सकती है-
शक्ति का पूर्ण पृथक्करण सम्भव नहीं- सरकार की आंगिक एकता
की दृष्टि से सरकार एक शरीर के समान है और उसके शरीर के अंगों को पूर्ण रूप से
पृथक नहीं किया जा सकता।
गैटिल कहते हैं कि- “शासन विभिन्न कार्य करने वाले कई अंगों से
बनता है, किन्तु उनका एक साझा कार्य और उद्देश्य होता है जिसकी सफलता के लिए उनमें
एकरूपता तथा सहयोग आवश्यक है। विभिन्न विभागों में पृथकता की एक दृढ़ रेखा नहीं
खीचीं जा सकती।“
शक्ति-पृथक्करण वांछनीय भी नहीं- यदि विभिन्न विभाग
स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हैं तो उनमें गतिरोध की सम्भावना उत्पन्न होती है,
जैसे- वर्तमान में संसद कानून बनाकर कॉलेजियम व्यवस्था को समाप्त करना चाहती है,
किन्तु यह उपबन्ध न्यायालय क्षेत्र में आता है इसलिए न्यायालय इस व्यवस्था को
मानने से अस्वीकार करती है। साथ ही इससे न्यायापालिका के शक्तियों का भी हनन होता
अर्थात् सरकार द्वारा नियुक्ति के कारण न्यायालय को सरकार के अनुसार कार्य करना
होगा ऐसा न करने पर उनकी नियुक्तियों या योग्यता पर संवैधानिक उल्लंघन का भय बना
रहेगा।
पृथकता के सिद्धान्त को लागू किये जाने से न्यायलय की
निष्पक्षता समाप्त हो जायेगी।
v सारांश
मॉण्टेस्क्यू का जीवन एक सीधा-सादा एवं
घटनारहित जीवन था। उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर समय अपने अध्ययन, लेखन व यात्रा
में बिताया। मॉण्टेस्क्यू भले ही उस सदी का महत्वपूर्ण विचारक था लेकिन आज उसे
केवल उसकी रचनाओं व लेखों की वजह से ही याद किया जाता है। जिसमें उनकी पुस्तक ‘कानून की आत्मा’ प्रमुख है। उनके जीवन के
बारे सिर्फ यही कहा जा सकता है कि “ उसने जन्म लिया, वह जीवित रहा और मर गया।“[19]
·
सन्दर्भ
1.
“बोर्डिस, फ्रांस” (https://www.google.com/maps)
2.
शोरेल, मॉण्टेस्क्यू, लन्दन, जार्ज रूटेज
एण्ड सन्स, 1887 (उलान प्रेस पुनर्मुद्रण,2011), पेज.10
3.
इलाइटेनमेण्ट कन्टेस्टेडः आधुनिक दर्शन और
मानव की मुक्ति 1670-1752. ओयूपी आक्सफोर्ड, 12 अक्टूबर, 2006.
4.
एग्रीएबल कनेक्शन्सः स्काटिश इलाइटेनमेन्ट
लिंक्स विद फ्रान्स केसमेट पब्लिशर, 5 नवम्बर, 2012.
5.
शोरेल(1887), पेज.12.
6.
मॉण्टेस्क्यू लिबरेटिस्म एण्ड द प्राब्लम ऑफ
यूनिवर्सल पॉलिटिक्स, कैम्ब्रज यूनिवर्सिटी प्रेस, 23 अगस्त, 2018;
सिविल रिलिजनः ए
डॉयलाग इन द हिस्ट्री ऑफ पॉलिटीकल फिलास्पी, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 25
अक्टूबर, 2018.
7.
शोरेल(1887), पेज.11-12.
8.
शोरेल(1887), पेज.12-13.
9.
सैण्टब्यूरी, 1911, पेज.776.
10.
सैण्टब्यूरी, 1911, पेज. 777.
11.
लोवेन्थल डेविड, रोमन की महानता व उनके पतन
के कारणों पर विचार, 1834, अनुवादित नोट्स।
12.
लोवेन्थल डेविड, रोमन की महानता व उनके पतन
के कारणों पर विचार, 1834, अनुवादित नोट्स;
वोल्फिलैक-ऑगर, कैथरीन (सितम्बर, 2013).
कंसिडरेसन सुर लेस कॉजेज डे लॉ ग्रैड्योर डेस रोमंस एट डे लेउर डिकेडेंस।
13.
द स्पिरिट ऑफ लॉ, मॉण्टेस्क्यू।
14.
जोन्स ओपन साइट, पेज. 232-233.
15.
द स्पिरिट ऑफ लॉ, मॉण्टेस्क्यू, पेज. 154।
16.
वही(Ibid), पेज. 154।
17.
वही(Ibid).
18.
डनिंग, ओपन साइट, पेज. 325.
19.
द स्पिरिट ऑफ लॉ, वर्ल्ड ग्रेट क्लासिक्स सीरीज़, स्पेशल
इण्ट्रोडक्शन, पेज.III.
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