राष्ट्रपति की शक्तियाँ (POWER OF PRESIDENT)
· कार्यपालिका शक्तियाँ (EXECUTIVE POWER)- अनुच्छेद 53 के अनुसार, संघ की कार्यपालिका शक्ति
राष्ट्रपति में निहित होगी ,जिसका प्रयोग वह संविधान के अनुसार स्वयं या अधीनस्थ पदाधिकारियों
के माध्यम से करेगा। भारत में समस्त कार्यपालिका के कार्य राष्ट्रपति के नाम से ही
किये जाते है,और सरकार के सभी निर्णय उसके निर्णय माने जाते है।
ü राष्ट्रपति को संघ के मामलों में सूचना प्राप्त करने का
अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 78 के अनुसार यह कार्य प्रधानमंत्री को दिया गया
है, जो राष्ट्रपति को सभी सूचनाओं से अवगत कराता है, जो राष्ट्रपति माँगता है।
ü अनुच्छेद 74 के तहत राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए एक
मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है।
ü राष्ट्रपति प्रधानमंत्री सहित अन्य प्रमुख व्यक्तियों की
नियुक्ति करता है, जैसे-
संघ के मंत्रियों की
राज्यों के
राज्यपाल की
उच्चतम
न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
भारत का महान्यायावादी
भारत का नियन्त्रक महालेखा परीक्षक की
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त
राष्ट्रीय
अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष व सदस्य
राष्ट्रीय
महिला आयोग के अध्यक्ष व सदस्य
राष्ट्रीय
मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व सदस्य
अनुसूचि जाति व
अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष व सदस्य
पिछड़ा वर्ग
आयोग के अध्यक्ष व सदस्य
संघ राज्य
क्षेत्रों के राज्यपाल या प्रशासक तथा मुख्यमंत्री
वित्त आयोग
राजभाषा आयोग
ü राष्ट्रपति को संघ के कुछ अधिकारियों को पद से हटाने का
भी अधिकार प्राप्त है, क्योंकि ये राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करते
है। जैसे-
संघ के मंत्री
राज्यों के
राज्यपाल
भारत का
महान्यायावादी
ü अनुच्छेद 160 के तहत राष्ट्रपति आकस्मिक परिस्थिति में
राज्यपाल के कार्यों के निर्वहन हेतु उपबन्ध कर सकता है।
ü यूपीएससी के सदस्यों की संख्या, सेवा शर्तों तथा पदावधि
सम्बन्धी विषय में विनियम बनाने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है।
ü ऱाष्ट्रपति अपने नियुक्त किये गये प्रशासकों के माध्यम
से केन्द्र शासित प्रदेश का प्रशासन संभालता है।
ü राष्ट्रपति किसी भी क्षेत्र के अनुसूचित या जनजाति
क्षेत्र घोषित कर सकता है। जिसका प्रशासन वही संभलेगा।
ü राष्ट्रपति इन सभी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की
सलाह पर करता है।
· विधायी शक्तियाँ (LEGISLATIVE POWER)- भारत
का राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होने के साथ संसद का अभिन्न
अंग भी है। इसलिए राष्ट्रपति को विधायी शक्तियाँ भी प्राप्त है।
ü राष्ट्रपति को संसद का अधिवेशन बुलाने का अधिकार है। और
वह सत्रावसान की भी घोषणा कर सकता है। परन्तु संसद के बैठकों के बीच 6 माह से अधिक
का अन्तराल नही होना चाहिए। अतः राष्टरपति एक वर्ष में न्युनतम दो बैठक बुला सकता
है। राष्ट्रपति को लोकसभा की नियत अवधि से पूर्व उसे भंग करने का अधिकार प्राप्त
है।
ü राष्ट्रपति लोक सभा के प्रत्येक चुनाव के पश्चात प्रथम
सत्र के आरम्भ में तथा प्रत्ये वर्ष प्रथम सत्र के आरम्भ में संसद के दोनों सदनों
की संयुक्त बैठक को सम्बोधित करता है।
ü राष्ट्रपति को संसद के सदस्यों में अभिभाषण, सम्बोधन व
संदेश देने का अधिकार प्राप्त है। (अनुच्छेद 86)
ü राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनों में किसी साधारण विधेयक
पर मतभेद होने पर दोनो सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है, जिसकी अध्यक्षता
लोकसभा अध्यक्ष करता है।
ü राष्ट्रपति को लोकसभा में (अनुच्छेद 331) दो आंग्ल
भारतीय समुदाय और राज्यसभा में (अनुच्छेद 80) साहित्य, विज्ञान, कला और समाजसेवा
के क्षेत्र में विशेष अनुभवी बारह आंग्ल भारतीय समुदाय के प्रतिनिधियों को मनोनीत
करने का अधिकार प्राप्त है।
ü संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के अनुमति से कानून
बनता है। धन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयकों को
राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। राष्ट्रपति के पास विधेयकों को रोकने
के लिए अपनी वीटो पावर का भी प्रयोग कर सकता है।
ü जब राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित किसी विधेयक को
राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति के लिए सुरक्षित रख लेता है, तो राष्ट्रपति विधेयक
पर अपनी अनुमति दे सकता है अथवा नही भी दे सकता है या फिर राज्यपाल को पुनर्विचार
के लिए विधानमण्डल में भेजने का निदेश
देता है। यह बात ध्यान देने योग्य है, कि यदि विधानमण्डल विधेयक को कुछ संशोधन कर
या फिर संशोधन रहित पुनः राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजता है, तो राष्ट्रपति
विधेयक पर अनुमति देने के लिए बाध्य नही है।
ü कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति के पूर्व सहमति से पेश किये
जाते है, परन्तु बिना पूर्वानुमति के भी विधेयक पेश करने पर वो अमान्य नही घोषित
किये जाते, परन्तु कुछ विधेयकों में राष्ट्रपति की पुर्वानुमति आवश्यक है, जैसे-
v धन विधेयक
v नये राज्य के निर्माण या वर्तमान राज्य के
क्षेत्र, सीमा व नाम में परिवर्तन करने वाले विधेयक
v वह विधेयक,जो भारत में संचित निधि के व्यय से
सम्बन्ध रखता है, किन्तु वह धन विधेयक नही है।
v भूमि अधिग्रहण सम्बन्धित विधेयक
v व्यापार स्वतन्त्रता को सीमित करने वाला
राज्य का कोई विधेयक
v कराधान से सम्बन्धित विधेयक जिसमें राज्य
का हित प्रभावित होता हो।
ü जब संसद सत्र में न हो, तो राष्ट्रपति को अनुच्छेद 123
के अन्तर्गत अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गई है। संसद के दोनो सदनों में पारित
अध्यादेश राष्ट्रपति के अनुमति के बाद अधिनियम बन जाता है। यदि संसद का एक सदन
सत्र में हो तो भी अध्यादेश जारी किया जा सकता है।
· न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers)-
संविधान के
अनुच्छेद 50 के तहत् कार्यपालिका और न्यायापालिका को पृथक रखा गया है। इसलिए
राष्ट्रपति को न्याय प्रबंधन के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की कोई विशेष शक्ति
प्राप्त नही है, परन्तु फिर भी राष्ट्रपति को कुछ न्यायिक शक्तियाँ दी गई है।
ü क्षमादान की शक्ति- अनुच्छेद 72 के तहत् राष्ट्रपति को
क्षमादान की शक्ति प्रदान की गई है। अतः राष्ट्रपति किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध
व्यक्ति को क्षमा कर सकता है या प्रविलम्ब परिहार विराम व लघुकरण कर सकता है। अपनी
इस शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सलाह पर करता है, परन्तु राष्ट्रपति को यह
शक्ति निम्निलिखित मामलों में प्राप्त है।
i.
जब दण्ड सेना न्यायलय द्वारा दिया गया हो।
ii.
जब दण्ड संघीय विषय से संबन्धित विधि के विरुद्ध अपराध
के लिए दिया गया हो।
iii.
जब दण्डादेश मृत्युदण्ड हो।
· वित्तीय शक्तियाँ(Financial Powers)- राष्ट्रपति को वित्तीय क्षेत्र में कुछ महत्तवपूर्ण
शक्तियाँ प्राप्त है। राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में संसद के
दोनो सदनों के सम्मु ख भारत सरकार की उस वर्ष के लिए आय और व्यय का विवरण रखवाता
है।
· उसकी आज्ञा के बिना धन विधेयक अथवा वित्त
विधेयक और अनुदान मांगें लोकसभा में प्रस्तावित नही की जा सकती।
· भारत की आकस्मिक निधि पर भी राष्ट्रपति का
नियन्त्रण होता है।
· उसे एक वित्त आयोग नियुक्त करने का भी
अधिकार प्राप्त है, जो आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को परामर्श देता
है।
· सैन्य शक्तियाँ(Military Powers)- भारत का राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का प्रधान सेनापति होता
है। उसे युद्ध की घोषणा करने और शान्ति स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है।
राष्ट्रपति तीनों सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है।
· राजनयिक शक्तियाँ (Diplomatic Powers)- भारत का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति
वैदेशिक क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। विदेशों से सन्धि व समझौते
राष्ट्रपति के नाम पर किये जाते है।
· आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency Powers)- राष्ट्रपति को संकटकालीन समय में तीन प्रकार की संकट या
आपात की उद्घोषणा करने का अधिकार है।
· राष्ट्रीय आपात(National Emergency)- अनुच्छेद-352 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को यह लगता है कि युद्ध, बाह्य
आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके किसी भाग में सुरक्षा संकट में है
तो वह राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा कर सकता है।आपात की उद्घोषणा का एक माह के भीत
संसद द्वारा अनुमोदन किया जाना चाहिए। अनुमोदन के पश्चात् आपात 6 माह तक लागू
रहेगा। पुनः लागू करने के लिए पुनः अनुमोदन लेना आवश्यक है।
अनुच्छेद 352 के तहत् अब तक
तीन बार राष्ट्रीय आपात लगाया जा चुका है।
1. 1962 में भारत पर चीन के
आक्रमण के कारण।
2. 1971 में भारत पर
पाकिस्तान के आक्रमण के कारण।
3. 1975 में आन्तरिक अशान्ति
के आधार पर ।
· राष्ट्रपति शासन- संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार यदि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रतिवेदन
करने पर राष्ट्रपति को लगता है कि उस राज्य का शासन संविधान के उपबन्धों के अनुसार
नही चलाया जा सकता तो ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाकर राष्ट्रपति राज्य
का शासन अपने हाथों में ले सकता है। संसद से अनुमोदन के बाद कोई उद्घोषणा एक बार
में 6 माह से अधिक समय तक ,कुल मिलाकर तीन वर्ष से अधिक समय तक जारी नही रह सकता।
· वित्तीय आपात- अनुच्छेद-360
के अनुसार वित्तीय संकट के समय राष्ट्रपति वित्तीय आपात की उद्घोषणा कर सकता है।
ऐसी उद्घोषणा 2 माह के पश्चात् लागू नही रहेगी, जब तक उसे संसद द्वारा अनुमोदित
नही कर दिया जाता।
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